इंदौर के मूसाखेड़ी चौराहे पर सब्जी बेच अपना रोजगार चलाने वाले अशोक नागर और उनकी पत्नी के दिन अब बदलते दिखाई दे रहे हैं, क्यूंकि उनकी बेटी अब सिविल जज बन गई है। वंही बेटी की सफलता के बाद माँ-बाप फूले नहीं समा रहे है। तो आइये जानते है कि कैसे एक सब्जी विक्रेता की बेटी ने सिविल जज बनकर अपने परिवार का नाम रौशन कर दिया।
माँ-बाप ने सब्जी बेचकर बिटिया को पढ़ाया!
मामला मध्य प्रदेश के जिला इंदौर का है। यंहा के अशोक नागर शहर के मूसाखेड़ी इलाके में सब्जी विक्रेता अशोक नागर ने अपनी बिटिया अंकिता नागर को सब्जी बेचकर पढ़ाया लिखाया। पापा सुबह 5 बजे उठकर मंडी चले जाते हैं। मम्मी सुबह 8 बजे सभी के लिए खाना बनाकर पापा के सब्जी के ठेले पर चली जाती हैं, फिर दोनों सब्जी बेचते हैं। वंही बड़ा भाई आकाश रेत मंडी में मजदूरी करता है। छोटी बहन की शादी हो चुकी है।
भास्कर की एक रिपोर्ट अनुसार, अंकिता नागर सबसे बड़ी बेटी है जिसने सिविल जज की परीक्षा पास की है। बता दें कि अंकिता हर रोज सब्जी के ठेले पर शाम को बाजार के समय दो घन्टे अपने मम्मी-पापा की मदद करती थी। इनसबके बीच बचे हुए सिर्फ 8 घण्टे अंकिता मन लगाकर पढ़ाई करती। शाम को जब ठेले पर अधिक भीड़ हो जाती तो सब्जी बेचने चली जाती थीं।
रात 10 बजे दुकान बंद कर घर आ जाते थे। फिर रात 11 बजे से पढ़ाई करने बैठ जातीं। और आज नतीजा सबके सामने है कि एक सब्जी बेचने बाले की बिटिया जज साहिबा बन गई।
बुधवार को 25 साल की अंकिता नागर ने ये खुशखबरी सबसे पहले अपनी मां को दी। मां ठेले पर सब्जी बेच रही थीं। अंकिता रिजल्ट का प्रिंटआउट लेकर मां के पास पहुंची और बोली- मम्मी मैं जज बन गई।
पापा ने लोगो से पैसा उधार लेकर भरी फीस
आपको बता दे, अंकिता नागर ने सिविल जज एग्जाम में अपने SC कोटे में 5वां स्थान हासिल किया है। इस बारे में अंकिता नागर ने बताया कि ‘मैंने अपने चौथे प्रयास में व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-दो भर्ती परीक्षा में सफलता हासिल की है। अपनी खुशी को बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं।’’
अंकिता ने बताया, मैं तीन साल से सिविल जज की तैयारी कर रही हूं। 2017 में इंदौर के वैष्णव कॉलेज से LLB किया। इसके बाद 2021 में LLM की परीक्षा पास की। इनसबके बीच सबसे ज्यादा दिक्कत पैसो की कमी की बजह से फीस भरने में आती थी, लेकिन पापा ने बिटिया का हौसला कम नहीं होने दिया बल्कि उधार लेकर फीस चुकाई।
रिज्लट देख माँ के छलक पड़े आंसू
यही कारण है कि आज जैसे ही रिजल्ट अंकिता के हाँथ लगा बह ख़ुशी से उछल पड़ी और सबसे पहले यह खुशखबरी ठेले पर सब्जी बेच रही अपनी माँ को दी। कि माँ मैं जज बन गई। जिसके बाद माँ की आँखों से ख़ुशी से आंसू छलक पड़े। आज पूरा परिवार खुशियां मना रहा है।
अंकिता बताती है कि उनकी कामयाबी के पीछे उनके परिवार का बड़ा योगदान रहा, पहले माँ बाप ने मुश्किलों के बाबजूद पढ़ाई में कमी नहीं होने दी। वंही जिस कमरे में बैठकर बह पढ़ती बह इतना छोटा की गर्मी में तप जाता जिसकी बजह से पसीने से अक्सर किताबे भीग जाती थी, ऐसे में भाई ने तकलीफ देखि और अपनी मजदूरी के पैसो से मेरे लिए एक कूलर की ब्यबस्था की।
बाकई ये सच है कि अंकिता नगर जैसी बिटीया हमारे समाज के लिए प्रेरणा है कि जीवन में चाहे जितनी मुश्किलें आये लेकिन अपना लक्ष्य बनाकर रखो। आज पुरे समाज को प्रेरणा लेनी चाहिए कि बेटियां बेटो से कम नहीं होती।