12 हजार साल से भी ज्यादा पुराने हिंदू धर्म का पालन सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में किया जाता है। यही कारण है कि दुनिया के कई देशों में हिंदू मंदिरों का निर्माण किया गया है। इन मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। एक देश ऐसा भी है जहां दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस देश में कोई हिंदू नहीं है आइए आपको इस हिंदू मंदिर के बारे में विस्तार से बताते हैं।
विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर कहाँ स्थित है?
इस मंदिर का नाम अंगकोर वाट मंदिर है। यह मंदिर कंबोडिया के अंगकोर में स्थित है। अंकोर को पहले यशोधरपुर के नाम से जाना जाता था। इस मंदिर को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक भी कहा जाता है। भगवान विष्णु का यह मंदिर विशाल है।
यह बी.सी. 1112 से 1153 तक राजा सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल के दौरान निर्मित। यहां के शैल चित्र राम की कहानी को बहुत बारीकी से दर्शाते हैं। पूर्व के शासकों ने जिस स्थान पर यह मंदिर स्थित है उस स्थान पर बड़े-बड़े मंदिर बनवाए थे। इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रीय ध्वज में भी शामिल किया गया है।
इस देश में हिंदू क्यों नहीं हैं?
इतिहासकारों के अनुसार सालों पहले कंबोडिया में हिंदुओं की आबादी कहीं ज्यादा थी। लेकिन समय के साथ इस देश में कई लोगों ने धर्म परिवर्तन किया है। वर्तमान समय में देश अनन्य रूप से हिन्दू है, परन्तु विश्व के सबसे बड़े हिन्दू मंदिर वाले देश के रूप में देश की पहचान आज भी कायम है।
इस मंदिर का विशाल द्वार 1000 फीट चौड़ा है।
700 फीट चौड़ी खाई इस मंदिर की रक्षा करती है। दूर से देखने पर यह गड्ढा झील जैसा लगता है। मंदिर के पश्चिमी हिस्से में खाई को पार करने के लिए एक पुल बनाया गया है। यहां की दीवारों पर उकेरी गई पूरी रामायण को देखकर ऐसा लगता है कि विदेशों में रहने वाले कलाकारों ने भारतीय कला को जीवित रखने का हर संभव प्रयास किया है।
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
इस मंदिर के निर्माण से कई कहानियां जुड़ी हैं। कहा जाता है कि राजा सूर्यवर्मन ने कंबोडिया की राजधानी को अमर बनाने के लिए इस मंदिर का निर्माण कराया था। यहां उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश की तीन मूर्तियों को एक साथ रखकर पूजा शुरू की।
यह भी कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही दिन में एक अलौकिक शक्ति द्वारा किया गया था। हालांकि, इस मंदिर का निर्माण एक हिंदू शासक ने 12वीं शताब्दी में करवाया था। लेकिन 14वीं शताब्दी तक बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों ने यहां शासन करना शुरू कर दिया और मंदिर को बौद्ध रूप दे दिया गया।
गुमनामी के अंधेरे में खो गया था ये मंदिर
19वीं शताब्दी के बाद की शताब्दियों में, यह मंदिर गुमनाम हो गया। इस शताब्दी के मध्य में, फ्रांसीसी खोजकर्ता और प्रकृतिवादी हेनरी महोट ने मंदिर को फिर से खोजा। इसके बाद 1986 से 1993 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने मंदिर की रक्षा की।