मामा ने अपनी भांजी की शादी में 3 करोड़ 21 लाख रुपये खर्च किए। नाना भंवरलाल गरवा ने अपनी नातिन अनुष्का को 81 लाख रुपये कैश, नागौर में रिंग रोड पर 30 लाख का प्लॉट, 16 बीघा खेत, 41 तोला सोना, 3 किलो चांदी, एक नया ट्रैक्टर-ट्रॉली धान से भरी हुई और एक स्कूटी दी है।

Three uncles spent crores of rupees in nieces marriage
भांजी की शादी में तीन मामा ने खर्च किए करोड़ों रुपये

राजस्थान के नागौर जिले की ये शादी बेहद चर्चा में है। जहां तीन मामा ने भांजी की शादी में 3 करोड़ 21 लाख रुपये खर्च किए। साथ ही अपनी बहन को रुपयों से सजी ओढ़नी ओढ़ाई। यह शादी पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी हुई है। यह मामला जिले के जायल क्षेत्र के झाड़ेली गांव का है।

This marriage of Nagaur district of Rajasthan is very much discussed

यहां रहने वाली घेवरी देवी और भंवरलाल पोटलिया की बेटी अनुष्का की बुधवार को शादी हुई। इस दौरान अनुष्का के नाना बुरड़ी गांव निवासी भंवरलाल गरवा अपने तीनों बेटे हरेंद्र, रामेश्वर और राजेंद्र के साथ करोड़ों रुपये का मायरा लेकर पहुंचे।

भांजी की शादी में 3.21 करोड़ रुपये का मायरा

नाना भंवरलाल गरवा ने अपनी नातिन अनुष्का को 81 लाख रुपये कैश, नागौर में रिंग रोड पर 30 लाख का प्लाट, 16 बीघा खेत, 41 तोला सोना, 3 किलो चांदी, एक नया ट्रैक्टर-ट्रॉली धान से भरी हुई और एक स्कूटी दी है। घेवरी देवी ने जब अपने पिता और भाइयों के इस सम्मान को देखा, तो आंसू आ गए।

All three maternal uncles with their niece Anushka

दरअसल, राजस्थान में बहन के बच्चों की शादी पर ननिहाल पक्ष की तरफ से मायरा भरने की प्रथा है। सामान्य तौर पर इसे भात भरना भी कहा जाता है। इस रस्म में ननिहाल पक्ष की तरफ से बहन के बच्चों के लिए कपड़े, गहने, रुपये और अन्य सामान दिया जाता है। इसमें बहन के ससुराल पक्ष के लोगों के लिए भी कपड़े और जेवरात आदी होते हैं।

Chunri adorned with 500-500 rupee notes to the sister
बहन को ओढ़ाई 500-500 रुपये नोट से सजी चुनरी

घेवरी देवी के पिता भंवरलाल का कहना है कि उसके पास करीब 350 बीघा उपजाऊ जमीन है। उनके तीन बेटे हरेंद्र, रामेश्वर और राजेंद्र और घेवरी की इकलौती की बेटी हैं, जो उनके लिए ईश्वर का दिया एक बड़ा उपहार है। बहन बेटी और बहू से बढ़कर इस संसार में कोई बड़ा धन नहीं है।

नाना रुपयों से भरा थाल लेकर नातिन के घर पहुंचे

घेवरी देवी के पिता खुद अपने सिर पर रुपयों से भरकर रुपयों की थाली भरकर टेंट में पहुंचे। थाली में 81 लाख रुपये नगदी अपनी बेटी के लिए 500 रुपये से सजी ओढ़नी भी थी। साथ में 16 बीघा खेती के लिए जमीन नागौर शहर में रिंग रोड के ऊपर 30 लाख की लागत का एक प्लॉट 41 तोला सोना और 3 किलो चांदी के गहने दिए।

New tractor-trolley was also given in Myra
मायरा में नई ट्रैक्टर-ट्रॉली भी दी गई

इसके अलावा और अनाज की बोरियों से भरी हुई एकदम नया ट्रैक्टर ट्रॉली और स्कूटी के कई गिफ्ट दिए। यह मायरा चर्चा का विषय बन गया। समाज और पंच-पटेलों की मौजूदगी में ननिहाल पक्ष की ओर से जमीन के सारे डॉक्यूमेंट्स बेटी के परिवार को दिए गए।

नागौर के मायरा के मायने

नागौर के मायरा को बेहद सम्मान की नजर से देखा जाता है। बजुर्गों का कहना है कि मुगल शासन के दौरान के यहां के खिंयाला और जायल के जाटों द्वारा लिछमा गुजरी को अपनी बहन मान कर भरे गए मायरा को तो महिलाएं लोक गीतों में भी गाती हैं।

All the land documents were given to the daughters family
जमीन के सारे डॉक्यूमेंट्स बेटी के परिवार को दिए गए

ऐसा कहा जाता है कि यहां के धर्माराम जाट और गोपालराम जाट मुगल शासन में बादशाह के लिए टैक्स कलेक्शन कर दिल्ली दरबार में ले जाकर जमा करने का काम करते थे।

ऐसे हुई थी मायरे की शुरुआत

मायरे की शुरुआत नरसी भगत के जीवन से हुई थी। नरसी का जन्म गुजरात के जूनागढ़ में आज से 600 साल पूर्व हुमायूं के शासनकाल में हुआ। नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे. वो अपनी दादी के पास रहते थे। उनका एक भाई-भाभी भी थी। भाभी का स्वभाव कड़क था।

एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापस आ गई तथा उनका बहरापन भी ठीक हो गया। नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए। नरसी का विवाह हुआ, लेकिन छोटी उम्र में पत्नी भगवान को प्यारी हो गई।

यह सारी जानकारी इंटरनेट से ली गई है giddo न्यूज़ इसकी खुद से पुष्टि नहीं करता है

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