17 वर्षीय वो किसान का अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए पार्ट-टाइम दूध बेचने का काम करता था. हरियाणा के करनाल में नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्‍टीट्यूट (NDRI) के कैंपस में वह एक बूथ पर दूध बेचकर 3 रुपये कमाता. यह उसके रोजमर्रा का हिस्‍सा बन गया था. उसे इस बात का अंदाजा भी कहां था कि एक दिन वह 800 करोड़ कमाने वाली डेयरी कंपनी का मालिक बन जाएगा.

कहानी नारायण मजूमदार की

अपने संघर्ष के करीब 22 साल बाद उस लड़के डेयरी कंपनी की नींव रखी थी. दूध जुटाने के लिए वह हावड़ा में अपनी साइकिल पर घर-घर जाता. इसी संघर्ष के दम पर उस लड़के ने पूर्वी भारत की सबसे बड़ी डेयरियों में से एक मानी जाने वाली कंपनी खड़ी कर दी. उस लड़के का नाम है नारायण मजूमदार, जो मजूमदार रेड काउ डेयरी (Red Cow Dairy) के मालिक हैं. उनकी कंपनी दही, घी, पनीर और रसगुल्‍ला के अलावा कई तरह के दूध की बिक्री कर सालाना 800 करोड़ रुपये से ज्‍यादा का टर्नओवर बनाती है.

पढ़ाई के लिए दूध बेचना शुरू किया

25 जुलाई 1958 में पश्चिम बंगाल के नादिया जिले में जन्मे नारायण मजूमदार तीन भाई-बहनों में दूसरे नंबर के थे. उनके पिता बिमलेंदु मजूमदार किसान और मां बसंती मजूमदार गृहिणी थीं. स्थानीय स्कूल से ही शुरुआती पढ़ाई करने वाले नारायण ने 1975 में करनाल के एनडीआरआई में डेयरी टेक्‍नोलॉजी से बीएससी पूरा किया. उस समय उनके कोर्स की फीस 250 रुपये थी. इतनी रकम भी नारायण के लिए बहुत ज्‍यादा थी. इसके लिए नारायण पूरी तरह से घरवालों पर निर्भर नहीं रहे.

उन्होंने अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए फर्स्‍ट ईयर के पहले दो महीने इंस्‍टीट्यूट में पार्ट-टाइम काम करना शुरू किया. इसके साथ ही वह सुबह 5 से 7 बजे तक दूध बेच कर रोजाना 3 रुपये कमाते थे. इसके अलावा उन्हें पश्चिम बंगाल सरकार से 100 रुपये की स्‍कॉलरशिप मिलने लगी. पिता भी घर से हर महीने 100 रुपये भेजते. इस तरह से उन्होंने 1979 में डिग्री प्राप्त की. हालांकि, पढ़ाई के अलावा नारायण के इस संघर्ष के बावजूद उनके परिवार को एक एकड़ खेत को बेचना पड़ा.

ऐसा रहा नौकरियों का सफर

डिग्री पूरी होने के बाद मजूमदार को कोलकाता में क्‍वालिटी आइसक्रीम में डेयरी केमिस्‍ट के तौर पर नौकरी मिल गई. उस समय उनकी सैलरी 612 रुपये थी. गांव से ऑफिस पहुंचने के लिए उन्‍हें सुबह 5 बजे की ट्रेन पकड़नी होती थी. इसके लिए वह सुबह 4 बजे उठ जाया करते थे. वापस घर लौटने में उन्‍हें रात के 11 बज जाते थे. हर रात उनके पिता स्‍टेशन पर लालटेन लेकर उनका इंतजार करते थे.

नारायण तीन महीने में ही इस नौकरी से ऊब गए और उन्होंने इसे छोड़ सिलीगुड़ी में हिमुल (हिमालयन कोऑपरेटिव) में नौकरी शुरू कर दी. यहां उनकी मुलाकात मदरी डेयरी में महाप्रबंधक रहे डॉ जगजीत पुंजार्थ से हुई. डॉ जगजीत द्वारा मिले प्रस्ताव से नारायण मजूमदार ने कोलकाता जो तब कलकत्‍ता था, में मदर डेयरी ज्‍वाइन कर ली.

1981 में मदर डेयरी ज्वाइन करने के बाद नारायण ने यहां तेजी से तरक्की की. इसके बाद 1985 में उन्होंने मदर डेयरी छोड़ बहरीन में डैनिश डेयरी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन में काम करना शुरू कर दिया. तीन महीने बहरीन में रहने के बाद वह ऊब गए, उन्हें अपने परिवार के नजदीक रहना था. जिस कारण वह बहरीन की नौकरी छोड़ दोबारा कोलकाता लौट आए और फिर से मदर डेयरी ज्वाइन कर ली.

1995 में मजूमदार हावड़ा में ठाकेर डेयरी प्रोडक्‍ट में कंसल्‍टेंट जनरल मैनेजर बन गए. इस दौरान वह कंपनी के लिए डेयरी किसानों से दूध खरीदने लगे. वह अपनी साइकिल से दूध खरीदने करने के लिए जाते थे. नारायण मजूमदार के प्रदर्शन से खुश होकर ठाकेर ने 1997 में उनके लिए एक चिलिंग प्‍लांट लगा दिया. यह प्‍लांट तीन महीने के भीतर मुनाफे में आ गया.

शुरू की खुद की कंपनी

1999 नारायण ने 7-10 लाख रुपये लगाकर अपने खुद के चिलिंग प्‍लांट लगाए. 2000 में उन्‍होंने ठाकेर से चिलिंग यूनिट भी खरीद ली. उसी साल उन्‍होंने 500 लीटर की क्षमता का पहला मिल्‍क टैंकर खरीदा. 2000 में ही उन्‍होंने प्रॉपराइटरशिप फर्म को पार्टनरशिप कॉरपोरेशन में बदल दिया. इसके लिए उन्‍होंने पार्टनर के तौर पर अपनी पत्‍नी को जोड़ा. ये साल 2003 था जब मजूमदार ने ठाकेर डेयरी को छोड़ रेड काउ डेयरी नाम की कंपनी शुरू की.

2007 में नारायण ने कोलकाता डेयरी के साथ गठजोड़ कर लिया. इसी के साथ रेड काउ पॉली पाउच की लॉन्चिंग की. आज के समय में रेड काउ डेयरी की तीन प्रोडक्‍शन फैक्‍ट्री हैं. जहां 1,000 से ज्‍यादा लोग काम करते हैं.

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