हमारे देश में ऐसे अनेकों बच्चे हैं जो अत्यंत गरीबी के कारणवश शिक्षा से वंचित रह जाते हैं जबकी बच्चे ही हामरे देश का भविष्य हैं। शिक्षा नहीं मिलने की वजह से अनेकों बच्चे शिक्षा से दूर ही रह जाते हैं परिणामस्वरुप उनका पूरा जीवन अंधेरे में व्यतीत हो जाता है। लेकिन हमारे देश में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो शिक्षा के महत्व को समझते हुए शिक्षा से वंचित आर्थिक रुप से कमजोर बच्चों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं।

उन्हीं में से एक हैं सीमा सेठ (Seema Seth), जो उम्र में उस पड़ाव में भी बच्चों का भविष्य संवार रही है जिस उम्र में लोग आराम से जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। 66 वर्षीय सीमा सेठ उन सभी गरीब बच्चो के लिए मददगार बनकर सामने आई हैं जो या तो स्कूल नहीं होने की वजह से या अत्यंत गरीबी के कारण शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते हैं।

सीमा सेठ कारपोरेट के अनेकों बड़ी कंपनियों में 30 वर्षों तक काम किया है। लोग रिटायरमेंट के बाद बचा जीवन आराम से गुजारना चाहते हैं लेकिन सीमा की सोच अलग थी। कारर्पोरेट की नौकरी से जब वे सेवानिवृत हुई तभी से उनकी दिली तमन्ना थी कि वे कोई ऐसी पहल की शुरुआत करें जिससे लोगों की जिंदगी में परिवर्तन आ सके। इसी सोच के साथ उन्होंने फैसला कर लिया कि वे जिंदगी के बचे हुए दिनों में गरीब बच्चों के लिए काम करेंगी और आज वे कई बच्चों के जीवन में बदलाव लाने की राह पर अग्रसर हैं।

सीमा सेठ (Seema Seth) बीते 7 वर्षों से गुरुग्राम के उन बस्तियों के बच्चों में शिक्षा की दीप जला रही हैं जहां आसपास एक भी स्कूल नहीं है। बच्चों को शिक्षित करने के लिए उन्होंने सबसे पहले नर्सरी क्लास से लेकर 5वीं कक्षा तक की एक विद्यालय की शुरूआत की है, जहां ज्ञान के साथ-साथ सभी बच्चों को संस्कार और बुनियादी व्यवहार भी सिखाया जाता है। आज सीमा के वजह से सभी बच्चे स्कूल जा रहे हैं जहां उन्हें जीवन की नई दिशा दी जा रही है।

बच्चों को आत्मरक्षा और सामान्य जागरुकता जैसी चीजों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है

सीमा ने जब इस पहल की शुरूआत की थी उस समय स्कूल में महज 10 बच्चे ही थे, लेकिन देखते-देखते बच्चों की संख्या बढ़ने लगी और आज 180 से भी अधिक बच्चे स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। उन्हें इस काम पर बहुत ही गर्व की अनुभूति होती है। वह कहती हैं कि, उनके स्कूल के पढ़ाए गए बच्चे आज DPS जैसे विद्यालयों में आगे की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि, उनके विद्यालय में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें सामान्य जागरुकता, आत्मरक्षा और गुड टच-बैड टच का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इतना ही नहीं उन्हें सामान्य जीवन की बहुत सारी बेसिक चीजें का भी ज्ञान दिया जाता है साथ ही अच्छी आदतें भी सिखाई जाती है ताकि उनका जीवन अंधकार से निकलकर उजाले की तरफ बढ़ें।

इस काम में है भाषा की चुनौती

सीमा कहती हैं कि, यह सब इतना सरल नहीं है। बच्चों को पढ़ाने के बीच भाषा एक बहुत बड़ी रोड़ा है क्योंकि यहां पढ़ने वाले अधिकांश माता-पिता प्रवासी मजदूर हैं बंगाल से आए हैं। ऐसे में उनकी भाषा को समझना और समझाना बहुत कठिन कार्य है। लेकिन स्कूल के शिक्षकों द्वारा पूरी कोशिश की जाती है कि उन्हें हर चीज अच्छे से समझाया जाए। अन्त में वह कहती हैं कि, उनका सपना है कि इस मिशन से अधिकाधिक संख्या में बच्चे जुड़े और सभी का भविष्य उज्जवल हो।

सीमा सेठ की तरह यदि अन्य लोग भी समाज सेवा से जुड़ने लगे तो हमारे देश का कोई भी बच्चा शिक्षा जैसी धारदार हथियार से वंचित नहीं रहेगा। The Logically सीमा सेठ की कार्यों की प्रशंशा करता है।

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