कोटा की 20 वर्षीय छात्रा प्रेरणा सिंह इस बात का उदाहरण बन कर सामने आई हैं कि अगर आपके हौसलों में दम हो तो विपरीत परिस्थितियां भी आपको आपका लक्ष्य पाने से नहीं रोक सकतीं. ऑटो ड्राइवर पिता की मौत के बाद प्रेरणा और उनके परिवार ने जो कुछ भी झेला उसके बाद मजबूत से मजबूत इंसान टूट जाता है लेकिन प्रेरणा ने ना केवल खुद को संभाला बल्कि अब वह NEET UG 2023 परीक्षा पास कर अपने स्वर्गीय पिता का सपना भी पूरा करने जा रही है.
सबकुछ खो दिया मगर हौसला नहीं खोया
इस बेटी ने जब चार बच्चों की जिम्मेदारी के साथ 27 लाख के लोन को चुकाने का जिम्मा उठाए अपनी मां को दिन रात मेहनत करते देखा तभी ये ठान लिया कि वो ज़िंदगी में कुछ बनकर दिखाएगी. आज प्रेरणा NEET 2023 में सफल होने के बाद बेहद खुश हैं लेकिन ये खुशी उस संघर्ष के आगे नाकाफी है जो उन्होंने पिता की मौत के बाद झेला. इस दौरान एक वक्त की रोटी भी उनके लिए बड़ा सवाल थी.
परेशानियों से लड़ कर NEET में मारी बाजी
परिवार के साथ एक वक्त चटनी से रोटी खाकर गुजारा करने वाली प्रेरणा ने सबकुछ सहा मगर हिम्मत नहीं हारी. वह अपने लक्ष्य पर डटी रहीं. और इसका ये परिणाम सामने आया कि भूखे पेट रहकर पढ़ाई करने वाली प्रेरणा ने आज नीट क्लीयर कर लिया. ये कहानी है कोटा के महावीर नगर में रहने वाली प्रेरणा की, जिसने नीट यूजी में 686 नंबर हासिल कर सरकारी मेडिकल कॉलेज में अपनी सीट पक्की कर ली है.
ऑटो चालक पिता की हो गई मौत
रिपोर्ट के अनुसार, प्रेरणा सिंह के पिता बृजराज सिंह एक ऑटो चालक थे. इसी ऑटो के दमपर वे परिवार के भरण-पोषण और बच्चों की पढ़ाई की जीममदारी उठाए चल रहे थे. लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. 2018 में प्रेरणा दसवीं क्लास में पढ़ रही थीं, उसी साल उनके पिता बृजराज सिंह की कैंसर के कारण मौत हो गई. प्रेरणा ने भास्कर को बताया कि परिवार ने उनके पिता का जगह-जगह इलाज करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. करीब तीन लाख रुपए खर्च हुए लेकिन उन्हें बचाया ना जा सका. उनका ऑटो ही परिवार की कमाई का जरिया था. इसी से परिवार चल रहा था.
मां ने परिवार को संभाला
प्रेरणा ने बताया कि पिता के गुजरने के बाद वो टूट गईं. आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी लेकिन इस बुरे समय में मां ने सभी को संभाला. पिता की मौत के बाद कोरोना आ गया. जिस वजह से परिवार की आर्थिक स्थिति और खराब हो गई. रिश्तेदार जितनी मदद कर रहे थे उसी से घर चल रहा था. मां के परिवार और घरवालों ने मदद की. मां की पांच सौ रुपए पेंशन आती थी, जिससे जैसे-तैसे कर सभी भाई-बहन पढ़ रहे थे. इस दौरान भी प्रेरणा ने पढ़ाई नहीं छोड़ी. वो दस से बारह घंटे तक पढ़ाई करतीं. कोचिंग में पढ़ाई के बाद घर पर रिवीजन करती, जो समझ नहीं आता डाउट क्लास में पूछती थी. इस दौरान टीचर्स ने उनका पूरा सपोर्ट किया.
प्रेरणा का कहना है कि उनके पिता को हमेशा से उनपर भरोसा था. वो हमेशा कहते थे कि मेरी बेटी प्रेरणा नाम रोशन करेगी. प्रेरणा कहती हैं कि उस समय वो पढ़ने में अच्छी नहीं थीं फिर भी पिता को उनपर पूरा भरोसा था वह थे तब तक कोई दिक्कत नहीं आने दी. उनके जाने के बाद प्रेरणा ने ठान लिया कि पापा का सपना पूरा करना है. वो डॉक्टर बनना चाहती थी तो उसी को लक्ष्य मान कर पढ़ाई की.
चटनी रोटी खा कर की पढ़ाई
प्रेरणा की मां माया कंवर ने बताया कि वह ही हार जाती तो बच्चों का क्या होता. उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. यह स्थिति थी कि घर में सब्जी भी नहीं होती थी. एक समय रोटी के साथ प्याज या लहसुन की चटनी खाते थे. पढ़ाई करते रहते थे. बच्चे भी बहुत जल्द समझदार हो गए. उन्हें अगर दस रुपए भी दिए तो वह कई दिन तक संभालकर रखते थे. ये सोचकर की घर में काम आ जाएंगे.
बेटी ने कर दिया नाम रोशन
इन सबके बीच प्रेरणा के परिवार को कर्जे की मार भी झेलनी पड़ी. बृजराज सिंह की मौत के बाद मकान की किस्त नहीं जा सकी. इसके चलते बैंक ने नोटिस भेज दिया. बाद में कुछ किस्तें इधर-उधर से जमा की गईं. प्रेरणा के पिता के इंश्योरेंस का भी मामला चल रहा है. घर का केस भी चल रहा है. काफी परेशानियों में बच्चे पाले हैं. लेकिन अब जब बेटी ने नाम रोशन कर दिया तो उनकी मां को सभी परेशानियां छोटी लगती हैं.
प्रेरणा एमबीबीएस करने के बाद पीजी करना चाहती हैं. उसके बाद मेडिकल फील्ड में ही रिसर्च करना चाहती हैं. वह चाहती हैं कि कैंसर जैसी बीमारियों में और खोज हो और मरीजों को बचाया जा सके.