शामली। पति की दीर्घायु और परिवार को सुख शांति के लिए महिलाएं सोमवार को वट सावित्री पूजा व्रत रखेंगी। सोमवती अमावस्या और वट सावित्री पूजा-अर्चना व्रत एक दिन होने से इसका महत्व बढ़ गया है।
शहर के बुढ़ाना रोड हनुमान ज्योतिष कार्यालय के पंडित प्रभुशंकर शास्त्री और पंडित कुशलानंद शास्त्री के मुताबिक शनिवार को दोपहर दो बजे के बाद चतुर्दशी का प्रवेश हो रहा है। रविवार दोपहर दो बजे तक चतुर्दशी का संयोग रहेगा। रविवार दो बजे के बाद अमावस्या शुरू होकर सोमवार को शाम 5:59 बजे तक अमावस्या रहेगी। उदय काल में तिथि का प्रवेश सर्वोत्तम श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन गंगा-यमुना, सरोवरो में स्नान, ध्यान, पूजा श्रेष्ठकर माना गया है। वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संताप मिटाने वाला होता है। महिलाओं का वट सावित्री अमावस्या के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। इस व्रत को ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तथा ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक करने का विधान है।
कैसे करें वट सावित्री अमावस्या पूजा अर्चना
वट सावित्री अमावस्या के दिन प्रात: काल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें। बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। ब्रह्मा के बांईं ओर सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। दूसरी टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। ब्रह्मा और सावित्री का पूजन करें। पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें। जल से वट वृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर 3 बार परिक्रमा करें। वट वृक्ष के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपये रखकर सासुजी के चरण स्पर्श करें। यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं। वट तथा सावित्री की पूजा के पश्चात प्रतिदिन पान, सिंदूर और कुमकुम से सौभाग्यवती स्त्री के पूजन का भी विधान है। यही सौभाग्य पिटारी के नाम से जानी जाती है। सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है। कुछ महिलाएं केवल अमावस्या को एक दिन का ही व्रत रखती हैं। पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें।