देश में इन दिनों अस्थिरता का माहौल है. किसान आंदोलन, कोरोना वैक्सीनेशन के बीच राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा जमा किया जा रहा है. इस बीच एक काम और है जो केन्द्र सरकार कर रही है पर उसका ज्यादा प्रचार नहीं किया गया. वो काम है दारा शिकोह की कब्र तलाशना.
17वीं शताब्दी के मुग़ल शहज़ादे दारा शिकोह की कब्र का मसला सरकार के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है. मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के काल के इतिहासकार मानते हैं कि शिकोह को मौत के बाद हुमायूं के मक़बरे में कहीं दफ़न किया गया था. पर ये कब्र असल में है कहां, ये विवाद का विषय बना हुआ है.
विवाद क्यों है, ये जानने से पहले जानिए कि आखिर दारा शिकोह है कौन?
शाहजहां के खास थे दारा शिकोह
दारा शिकोह मुगल बादशाह शाहजहां के सबसे बड़े बेटे थे. और सबसे खास भी. इतना खास कि शाहजहां ने कभी भी दारा को खुद से अलग नहीं किया. उन्हें जंग पर नहीं भेजा, उन्हें रियासतें सम्हालने की जवाबदारी नहीं दी. उनसे ऐसा कोई काम नहीं करवाया, जिससे दारा को शाहजहां की नजरों से दूर होना पड़े.
‘दारा शुकोह, द मैन हू वुड बी किंग’ की लेखक अवीक चंदा बताती हैं कि दारा हमेशा शाहजहां के दरबार में उनके सामने रहते थे. जंग से उनका सामना वैसे कभी नहीं हुआ जैसे शाहजहां के और बेटों का. खासतौर पर औरंगजेब का, जो आगे चलकर हिंदुस्तान के तख्त पर बैठा. दारा विचारक, प्रतिभाशाली कवि और सूफी संगीत में रूचि रखने वाले सहज से व्यक्ति थे. सैन्य मामलों में उनकी कोई रुचि नहीं थी.
चूंकि चालाकियों से सामना कम हुआ इसलिए उनमें लोगों को परखने की शक्ति कम थी. जब दक्षिण में एक बड़े सैन्य अभियान का नेतृत्व करने की बात आई तो शाहजहां ने औरंगजेब पर जवाबदारी डाली. मुराद बख़्श को गुजरात की ओर और दूसरे बेटे शाहशुजा को बंगाल की ओर जंग के लिए भेजा. जबकि दारा उस वक्त शाहजहां के साथ रहे.
शाहजहां ने दारा की ताजपोशी का एलान कर दिया था. उनके लिए अपने तख्त के पास ही ‘शाहे बुलंद इक़बाल’ नाम से गद्दी बनाई गई. दारा को शाही कोष से रोजाना 1 हजार रुपए बतौर खर्च दिए जाते थे. इतिहासकार बताते हैं दारा ये पैसा गरीबों और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे.
तांत्रिकों के भरोसे जंग का निर्णय
28 मई 1633 को एक बहुत ही नाटकीय घटना हुई जिसने काफी हद तक ये बता दिया कि हिंदुस्तान का अगला वारिस कौन हो सकता है. असल में दिल्ली के महल में हाथियों की लड़ाई का खेल चल रहा था. सुधाकर और सूरत-सुंदर नाम के दो हाथी मैदान में थे. जहां सूरत-सुंदर हाथी मैदान छोड़ कर भागने लगा तो सुधाकर ने उसका पीछा शुरू किया.
मैदान में हालात खराब होने लगे. हाथी भागते हुए 14 साल के औरंगजेब के पास पहुंच रहा था, औरंगजेब ने वहां से भागने की बजाए हाथी के सिर पर वार कर दिया. इसके बाद काफी मशक्कत करके हाथी पर काबू पाया. जब हाथी उत्पात मचा रहा था तब मैदान में शाहजहां के सारे बेटे, सैनिक उतर आए पर दारा नहीं.
इस घटना के बाद शाहजहां ने औरंगजेब को गले लगा लिया. यह उनकी हिम्मत और बहादुरी का पहला नमूना था, जिसे दिल्ली की जनता ने देखा. हालांकि इतिहासकार राना सफ़वी ने अपनी किताब में कहा है कि इस घटना के वक्त दारा बहुत दूर थे इसलिए वे मैदान में नहीं पहुंचे.
अगर इस वाक्ये को छोड़ भी दें तब भी एक और घटना है जो दारा के निर्णय पर सवाल पैदा करती है. दारा शिकोह ने एक बार जंग में हिस्सा लिया. उनके साथ जितने सिपाही, हाथी और हमलावर सैनिक थे उतने ही साधू और तांत्रिक भी. दारा कंधहार पर चढ़ाई कर रहे थे, जहां से एक बार पहले औरगंजेब परास्त होकर वापिस आ चुके थे.
फ़ारसी सैनिकों के पास सशक्त सेना थी. वे जंग के लिए तैयार थे जबकि दारा ने अपने सैनिकों से ज्यादा तांत्रिकों पर विश्वास किया और उनकी मर्जी से जंग शुरू की. हालांकि वे हार गए. यह निर्णय उनके व्यक्तिव पर बहुत बुरा असर छोड़ गया.
…और कलम कर दिया गया सिर
शाहजहां के बाद तख्त पर बैठने के लिए औरंगजेब ने अपने पिता को बंदी बना लिया. यह चलन उनके परिवार के लिए नया नहीं था. क्योंकि शाहजहां ने भी सिंहासन पाने के लिए न सिर्फ़ अपने दो भाइयों ख़ुसरो और शहरयार की मौत का आदेश दिया बल्कि 1628 में गद्दी सँभालने पर अपने दो भतीजों और चचेरे भाइयों को भी मरवाया था.
उनके पहले शाहजहाँ के पिता जहाँगीर भी अपने छोटे भाई दान्याल की मौत के ज़िम्मेदार बने थे. इसलिए औरंगजेब का यह फैसला चौंकाने वाला नहीं था. उत्तराधिकार के लिए दारा और औरंगजेब के बीच जंग हुई. इस जंग में एक बार फिर दारा का निर्णय उनके लिए घातक साबित हुआ. जंग में औरंगज़ेब एक बड़े हाथी पर सवार थे और उन्होंने अपने हाथी के चारों पैर ज़ंजीर से बँधवा दिए, ताकि वो न तो पीछे जा सके और न ही आगे.
जंग जारी थी इस बीच किसी ने दारा से कहा कि हमारी सेना जीत रही है. अगर आप ऊँचे हाथी पर बैठेंगे तो मारे जाएंगे. दारा ने तत्काल हाथी से नीचे उतर गए. हाथी पर दारा की जगह खाली देखकर उनके सैनिक समझे कि वे मारे गए हैं और वे पीछे हट गए. तभी औरंगजेब के सैनिकों ने हमला तेज कर दिया.
दारा के पास भागने के सिवा कोई चारा नहीं था. वे भागकर पहले दिल्ली गए और फिर वहां से पहले पंजाब और फिर अफ़ग़ानिस्तान. वहाँ मलिक जीवन ने उन्हें छल से पकड़वा कर औरंगज़ेब के हवाले कर दिया. दिल्ली लाकर दारा को सड़कों पर घुमाकर बेइज्जत किया गया.
फ़्रेंच इतिहासकार फ़्रांसुआ बर्नियर ने अपनी किताब ‘ट्रेवल्स इन द मुग़ल इंडिया’ में लिखते हैं कि इस बेइज्जती के दौरान दारा का 14 साल का बेटा सिफ़िर शिकोह भी साथ था. बाद में दोनों को अलग कर दिया गया और फिर दारा शिकोह का सिर कलम कर दिया. इतिहासकार बताते हैं कि सिर कलम कर औरंगजेब ने उसे अपने पिता के पास तोहफे के तौर पर पहुंचाया था, जिसे देखकर वे अपने आंसू नहीं रोक पाए.
फिर विवाद क्यों उपजा है?
अब इस पूरी कहानी को पढ़ने के बाद आप सोच रहे होंगे कि दारा शिकोह पर अब विवाद क्यों हो रहा है? असल में सिर कलम करने के बाद दारा का धड़ हुमायूं के मक़बरे में दफ़्न किया गया. जहाँ बादशाह अकबर के बेटे दानियाल और मुराद दफ़्न हैं और जहाँ बाद में अन्य तैमूरी वंश के शहज़ादों और शहज़ादियों को दफ़्न किया गया था. जबकि सिर ताज महल परिसर आगरा में कहीं.
बर्नियर अपनी किताब में बताते हैं कि औरंगजेब का मानना था कि जब भी शाहजहाँ की नज़र अपनी बेगम के मक़बरे पर जाएंगी, उन्हें ख़्याल आएगा कि उनके सबसे बड़े बेटे का सिर भी वहाँ सड़ रहा है. अब सारा विवाद इसी बात पर है कि आखिर दारा शिकोह की कब्र है कहां? क्योंकि उनकी कब्र पर असल में कोई निशां नहीं है.
केन्द्र सरकार को दारा में दिलचस्पी इसलिए है क्योंकि बाकी मुगल बादशाहों की तुलना में दारा हिंदुत्व प्रेमी थे. उन्हें भारत की संस्कृति और हिंदू धर्म से प्यार था. वे इस धर्म को मानकर आगे ले जाना चाहते थे इसलिए औरंगजेब ने भी दारा को इस्लाम विरोध करार दिया था. केन्द्र सरकार दारा की कब्र तलाशकर उसे भारत के मुसलमानों के लिए मसीहा या फिर यूं कहें कि आइडियल के तौर पर प्रचारित करना चाहती है.
सत्तारुढ़ पार्टी भाजपा के नेता सैयद ज़फर इस्लाम का कहना है कि “दारा शिकोह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सभी धर्मों का अध्ययन किया और एक शांति अभियान चलाया. वे सभी धर्मों को एक साथ लेकर चलने में विश्वास करते थे. हालांकि कुछ आलोचक ये भी कह रहे हैं कि अगर ऐसा ही है तो दारा को मुसलमानों के लिए क्यों, पूरे हिंदुस्तान के लिए प्ररेणा बनाना चाहिए!